Nagfani Ashubh Kyon : घर में क्यों नहीं लगाते नागफनी का पौधा, क्यों पूजनीय है ब्रह्मकमल

Nagfani Ashubh Kyon : बिल्ली का रास्ता काट देना, छिपकली का अपने ऊपर गिर जाना, उल्लू का घर की छत पर बैठना आदि आदि अनेक घटनाओं को अशुभ माना जाता है। ऐसी ही एक मान्यता यह भी है कि घर में नागफनी का पौधा नहीं लगाना।

Nagfani Ashubh Kyon : घर में क्यों नहीं लगाते नागफनी का पौधा, क्यों पूजनीय है ब्रह्मकमल

⇓ प्रो. (डॉ.) महेश कुमार मेहता

Nagfani Ashubh Kyon : बिल्ली का रास्ता काट देना, छिपकली का अपने ऊपर गिर जाना, उल्लू का घर की छत पर बैठना आदि आदि अनेक घटनाओं को अशुभ माना जाता है। ऐसी ही एक मान्यता यह भी है कि घर में नागफनी का पौधा नहीं लगाना।

इसकी वजह यह बताई जाती है कि यह कांटे वाला होता है और घर में अशांति का वातावरण निर्मित होता है। मान्यताओं को अच्छे से समझने का प्रयास करें तो हम पाएंगे कि प्रकृति ने हर जीव को शुभ ही माना है। इसीलिए उनको अपनी गोद में स्थान दिया है। जैसे उल्लू को लक्ष्मी का वाहन बना दिया, कहीं-कहीं छिपकली का अपने ऊपर शुभ माना जाता है। इन सारी अशुभ मान्यताओं में कांटे वाले पौधों को भी शामिल किया गया है।

Nagfani Ashubh Kyon : घर में क्यों नहीं लगाते नागफनी का पौधा, क्यों पूजनीय है ब्रह्मकमल
प्रो. (डॉ.) महेश कुमार मेहता

प्रकृति ने बदल दी मान्यता

प्रकृति ने कांटे वाले पौधों को भी शुभ मान्यता में बदलने के लिए गुलाब को इतना अधिक सुंदर बना दिया कि फूलों में सब से सुंदर हो गया। इसी प्रकार नागफनी कुल के एक पौधे को हर परिवार के घर मे रिद्धि-सिद्धि एवं सुख-शांति के लिए स्थापित किया, जिसे हम ब्रह्मकमल के नाम से जानते हैं।

एक ही कुल के हैं दोनों

एक तरफ नागफनी है तो दूसरी ओर उसी कुल के ब्रह्मकमल की पूजा की जाती है। परिवार बरसों इंतज़ार करता है कि हमारे घर ब्रह्मकमल कब खिलेगा। और जब खिलने का दिन आता है तो बहुत खुशी का माहौल रहता है। चूंकि ये फूल सिफ़र् आधी रात में ही खिलता है और कुछ घंटों में ही मुरझा भी जाता है। अत: सब का बहुत खुश होना और पूजापाठ करना स्वाभाविक है।

ब्रह्मकमल खिलने पर खुशी

चूंकि हिमालय में पाया जाने वाला ब्रह्मकमल और हमारे यहाँ पाया जाने वाला ब्रह्मकमल एक सा ही दिखाई देता है। इसलिए हम भी खुशी-खुशी ब्रह्माजी का आशीर्वाद स्वीकारते हुए इसकी पूजा करते हैं।

रात 12 बजे करते हैं पूजा

इसके साथ ही हिमालय को ध्यान में रखते हुए कुछ लोग इसकी रात्रि 12 बजे पूजा कर इस फूल को शिवजी को चढ़ाकर अपने घर के मुख्य द्वार पर बांध देते हैं। जो भी हो, प्रकृति हर पौधे को किसी ना किसी मान्यता के सहारे संरक्षित करने का ज्ञान हमें दे ही देती है। अब आइए हम ब्रह्मकमल के विषय में वनस्पति विज्ञान से जुड़ी रोचक जानकारी लेते हैं।

सिर्फ हिमालय में ही मिलता है

ओरिजिनल ब्रह्मकमल सौसुरिया ऑब्वलाटा Saussuria obvallata है जो गेंदा और सूरजमुखी फैमिली Asteraceae का पौधा है। चूंकि ये ब्रह्मकमल सिर्फ और सिर्फ हिमालय में ही पाया जाता है। इसलिए इस फूल से एकदम मिलते जुलते फूल को हमारे यहाँ ब्रह्मकमल के नाम से ही हम लोग जानते हैं।

इस ग्रुप का है ब्रह्मकमल फूल

ये फूल Epiphyllum oxypetalum का है जो कि Cactaceae फैमिली का है कैक्टस ग्रुप का। खैर ये तो बॉटनी के अनुसार विश्लेषण है। मगर भगवान ने उन सभी को ब्रह्मकमल के दर्शन करा दिए जो हिमालय नहीं जा सकते हैं।

माइथोलॉजी से जोड़ कर संरक्षण

इसके साथ ही इथनो बॉटनी के अंतर्गत कैक्टस के इस पौधे को भी हिन्दू माइथोलॉजी से जोड़ते हुए इसका संरक्षण भी करा दिया। है ना प्रकृति का चमत्कार..! हर घर में पूजापाठ और दर्शन किये जाते रहेंगे, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि वनस्पति है तो ही सब कुछ है।

(लेखक जयवंती हॉक्सर महाविद्यालय बैतूल के सेवानिवृत्त प्राध्यापक हैं)

Uttam Malviya

उत्तम मालवीय : मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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