Medical Collage Betul : जी का जंजाल न बन जाए मेडिकल कॉलेज, MPMOA ने बताए नुकसान
Medical Collage Betul : मध्यप्रदेश मेडिकल ऑफिसर्स ऐसोसिएशन (MPMOA) बैतूल ने वर्तमान जिला अस्पताल को मूल स्वरूप में यथावत रखते हुए पीपीपी मोड के कॉलेज को इसके समानांतर बनाए जाने की मांग की है। इस संबंध में एमपीएमओए ने आज विधायक हेमंत खंडेलवाल और कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा। ज्ञापन में जिला अस्पताल को ही पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज बनाए जाने से होने वाले नुकसानों की जानकारी भी दी गई है।
Medical Collage Betul : बैतूल। मध्यप्रदेश मेडिकल ऑफिसर्स ऐसोसिएशन (MPMOA) बैतूल ने वर्तमान जिला अस्पताल को मूल स्वरूप में यथावत रखते हुए पीपीपी मोड के कॉलेज को इसके समानांतर बनाए जाने की मांग की है। इस संबंध में एमपीएमओए ने आज विधायक हेमंत खंडेलवाल और कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा। ज्ञापन में जिला अस्पताल को ही पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज बनाए जाने से होने वाले नुकसानों की जानकारी भी दी गई है।
एमपीएमओए के जिला अध्यक्ष डॉ. रूपेश पद्माकर, पीआरओ डॉ. रानू वर्मा, कोषाध्यक्ष डॉ. विनोद बरडे और सदस्य डॉ. जगदीश घोरे व रंजीत राठौर द्वारा यह ज्ञापन सौंपा गया। इसमें बताया गया है कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड पर जिला चिकित्सालय में देकर मेडिकल कॉलेज दिया जाना तय हुआ है। इसके अनुसार 75 प्रतिशत बिस्तर फ्री सेवा एवं 25 प्रतिशत बिस्तर पेमेंट अथवा आयुष्मान से लिये जायेंगे।
इसके साथ ही चिकित्सालय के नर्सिंग स्टाफ व डॉक्टरों की सेवाएँ प्राइवेट मेनेजमेंट के अधीन की जाएगी या उन्हें निकालकर अन्यत्र शिफ्ट किया जाएगा। इस पूरी व्यवस्था की कुछ तथ्यात्मक व व्यवहारिक खामियां हैं। जिन पर विचार करना अनिवार्य है। बिना इन पर विचार किये जल्दबाजी में इस व्यव्स्था को अपनाया जाना हानिकारक हो सकता है। इसके कारण जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
स्वास्थ्य श्रृंखला हो जाएगी भंग
भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं के लिये एक बेहतर क्रम में गाँव में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों से सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, सिविल अस्पताल, जिला अस्पताल व मेडिकल कॉलेज की व्यस्था की गई है। उपरोक्त मॉडल के चलते यह व्यवस्था भंग हो जाएगी, क्योंकि फिर जिला चिकित्सालय का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। जिले में केवल मेडिकल कॉलेज होगा जो कि प्राइवेट प्रबंधन के अधीन होगा। ऐसे में पूर्ण रुप से द्वितीय व तृतीय स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं मध्यप्रदेश सरकार के हस्तक्षेप से बाहर होगी और प्राइवेट क्षेत्र की मनमानी होगी।
सरकारी कार्य भी प्राइवेट संस्था में
जिलों में पूर्व शासकीय स्वास्थ्य संस्था के अभाव में एमएलसी, पीएम व आयु निर्धारण इत्यादि महत्वपूर्ण कार्य भी प्राइवेट संस्था द्वारा किये जायेंगे जो कि व्यवस्था के लिये उचित प्रतीत नहीं होता। इसके साथ ही इसके सही तरीकों से होने पर भी संदेह है। प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से ये सभी कार्य शासकीय नियंत्रण से बहार हो जायेंगे। अन्य बडृे जिलों जैसे भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर आदि शहरों में सरकारी मेडिकल कॉलेज ये ही कार्य फोरेंसिक साइंस व पीएम, मेडिकल कॉलेज या अस्पतालों में ही संचालित हो रहे हैं।
बढ़ने की जगह कम हो जाएंगे बेड
वर्तमान में जिला चिकित्सालय में 500 बेड उपलब्ध हैं। पीपीपी मोड में भी इनकी संख्या उतनी ही रहेगी, लेकिन 25 प्रतिशत पेमेंट के अनुसार 500 में से 125 बेड पेमेंट कोटे के हो जायेंगे, जिस पर आयुष्मान वाले मरीजों का या पैसों से इलाज होगा। ये पेमेंट वाले 25 प्रतिशत बेड पर मरीज लेने का निर्धारण कौन करेगा, यह भी तय नहीं।
ऐसे में जिले के आम और गरीब लोगों के लिए केवल 375 बेड ही फ्री बचेंगे। इसमें भी कौन से मरीज का इलाज फ्री होगा व कौन से मरीज पेमेंट देंगे पर इसकी पारदर्शिता का नियंत्रण शासन के नियंत्रण से बाहर होगा। बहरहाल, यह तय है कि इस व्यवस्था से बेड की संख्या कम हो जाएगी।
इस व्यवस्था को अमल में लाना जरुरी
एमपीएमओए ने इन हालातों को देख कर निवेदन किया है कि जिला चिकित्सालय में कार्यरत सभी डॉक्टर/नर्सिंग ऑफिसर, सभी तृतीय व चतुर्थ कर्मचारी (फार्मास्टि एवं टेक्निशियन) इत्यादि को यथावत शासन के अधीन रखकर कार्य संचालित रखा जाए।
साथ ही जिला चिकित्सालय के मूल स्वरुप को यथावत् रखते हुये मेडिकल कॉलेज को समानांतर रुप से संचालित किये जाने की व्यवस्था पर विचार किया जाएं। ताकि उपरोक्त समस्याओं का भविष्य में सामना न करना पड़ें।