एक ही नहीं होते हैं एडवोकेट और लॉयर, होता है बड़ा अंतर, जानकर चौक जाएंगे आप

कई बार हम एक ही व्यक्ति या वस्तु के एक से अधिक नाम सुनते हैं। अधिकांश बार होता यही है कि यह कई नाम एक ही होते हैं। वे एक-दूसरे के पर्यायवाची होते हैं, जिनका मतलब एक ही होता है। लोग अपनी सुविधा के अनुसार उनमें से कोई भी एक का उपयोग कर लेते हैं।

एक ही नहीं होते हैं एडवोकेट और लॉयर, होता है बड़ा अंतर, जानकर चौक जाएंगे आप

कई बार हम एक ही व्यक्ति या वस्तु के एक से अधिक नाम सुनते हैं। अधिकांश बार होता यही है कि यह कई नाम एक ही होते हैं। वे एक-दूसरे के पर्यायवाची होते हैं, जिनका मतलब एक ही होता है। लोग अपनी सुविधा के अनुसार उनमें से कोई भी एक का उपयोग कर लेते हैं।

वहीं दूसरी ओर कुछ नाम ऐसे होते हैं जो कि लगते एक से ही है, उपयोग भी एक ही व्यक्ति के लिए किए जाते हैं। लेकिन, उनका मतलब अलग-अलग होता है। हालांकि हर व्यक्ति इनके अंतर को गहराई के साथ नहीं जानता।

एक जैसे लगने वाले कई नाम तो इतने अधिक प्रचलित हो जाते हैं कि इनके बीच को अंतर को जानने तक की कोशिश नहीं करते हैं। ऐसे ही दो नाम है एडवोकेट और लॉयर। अधिकांश लोग यही जानते हैं कि यह एक ही व्यक्ति या पेशेवर के लिए उपयोग में होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। इनमें काफी अंतर होता है। आज हम इसी बारे में जानेंगे।

सबसे मुख्य अंतर यह है

एडवोकेट (अधिवक्ता) और लॉयर (वकील) में सबसे बड़ा और मुख्य अंतर तो यह होता है कि एडवोकेट अपने क्लाइंट के हितों की रक्षा के लिए देश की किसी भी अदालत में खड़ा होकर पैरवी कर सकता है, जिरह कर सकता है, उसका केस लड़ सकता है।

वहीं दूसरी ओर लॉयर के साथ ऐसी स्थिति नहीं होती। वे अपने क्लाइंट को कानूनी सलाह या परामर्श जरुर दे सकते हैं। लेकिन, उनके हितों की रक्षा के लिए उनके प्रतिनिधि के तौर पर किसी भी अदालत में खड़े होकर वह सब काम नहीं कर सकते जो कि एडवोकेट कर सकते हैं।

क्यों बनती है यह स्थिति

अब आप सोचेंगे कि एडवोकेट बनने के लिए भी कानून की डिग्री लगती है और लॉयर के पास भी वही डिग्री होती है। ऐसे में फिर यह इतना बड़ा अंतर क्यों होता है। इसकी वजह है एक निर्धारित प्रक्रिया, जिसका पालन करने के बाद ही एक लॉयर बतौर एडवोकेट अदालतों में खड़ा होकर पैरवी करने के अधिकार प्राप्त कर सकता है।

यह प्रक्रिया करनी होती है पूरी

दरअसल, कानून की डिग्री प्राप्त करने पर कोई भी वकील या लॉयर तो बन जाता है, लेकिन अदालतों में प्रेक्टिस के लिए एक और प्रक्रिया पूरी करना होता है। यह है संबंधित स्टेट बार काउंसिल में अपना नामांकन कराना और प्रेक्टिस का प्रमाण पत्र प्राप्त करना।

यह प्राप्त करने के बाद ही कोई लॉयर बतौर एडवोकेट वह सब काम कर सकता है। इसके बाद उन्हें अदालत में उपस्थित होने के दौरान काला कोट पहनने का अधिकार भी प्राप्त हो जाता है। बार काउंसिल में नामांकन के पश्चात उन्हें अधिवक्ता अधिनियम, 1961 का पालन भी करना होता है।

किसके क्या होते हैं अधिकार

एक अधिवक्ता के पास अपने क्लाइंट के लिए देश की अदालतों में पेश होने, वकालत करने, तर्क प्रस्तुत करने, गवाहों का परीक्षण करने, याचिका दायर करने आदि के अधिकार प्राप्त हो जाते हैं।

वहीं दूसरी ओर एक वकील या लॉयर अपने क्लाइंट को केवल कानूनी परामर्श देकर मार्गदर्शन कर सकते हैं। वे कानूनी दस्तावेजों का मसौदा तैयार कर सकते हैं। विशेषज्ञता प्राप्त कर कर सलाहकार या कॉर्पोरेट वकील की भूमिका निर्वहन कर सकते हैं।

कुल मिलाकर इस अंतर को एक पंक्ति में यह कहा जा सकता है कि सभी अधिवक्ता या एडवोकेट, वकील तो होते हैं, लेकिन सभी वकील या लॉयर अधिवक्ता या एडवोकेट नहीं हो सकते।

Uttam Malviya

उत्तम मालवीय : मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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