Dhan Ki Nai Kism : अब धान की रोपाई नहीं बल्कि बुआई होगी, खर्च के साथ पानी भी बचेगा
Dhan Ki Nai Kism : मध्यप्रदेश के धान उत्पादक किसानों के लिए अच्छी खबर है। अब उन्हें घुटने भर कीचड़ और पानी में खड़े रहकर धान की रोपाई नहीं करना होगा। इसकी जगह अब सूखे खेत में गेहूं, चने और अन्य फसलों की तरह उसकी बुआई की जा सकेगी। इससे किसानों को खासी राहत मिलेगी।
Dhan Ki Nai Kism : मध्यप्रदेश के धान उत्पादक किसानों के लिए अच्छी खबर है। अब उन्हें घुटने भर कीचड़ और पानी में खड़े रहकर धान की रोपाई नहीं करना होगा। इसकी जगह अब सूखे खेत में गेहूं, चने और अन्य फसलों की तरह उसकी बुआई की जा सकेगी। इससे किसानों को खासी राहत मिलेगी।
यह संभव हो सका है जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर और फिलीपींस के मनीला स्थित अंततराष्ट्रीय धान अनुसंधान के वैज्ञानिकों की बदौलत। उन्होंने सूखे खेतों में धान की बुआई करने की तकनीक तैयार कर ली है। प्रोजेक्ट में जनेकृविवि के वैज्ञानिक दल की अगुवाई डॉ. जीके कौतु एवं आईआरआरआई फिलीपिन्स के दल की अगुवाई डॉ. जौहर अली ने की। प्रोजेक्ट से जुड़ी पहली बैठक 24 से 26 जुलाई तक जबलपुर में हुई। इसमें आईआरआरआई तथा फिलीपिन्स के 10 वैज्ञानिक शामिल हुए।
समापन पर यह बोले कुलपति
बैठक के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि कुलपति डॉ. प्रमोद कुमार मिश्रा ने कहा कि धान की नई किस्मों को तैयार करने, पोषण मिनरल से भरपूर चावल रहे और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में खरीफ का फसली क्षेत्र बढ़ाने सहित ऐसे विभिन्न बिंदुओं पर तीन दिनों तक मंथन हुआ है। यह किसान हित में कारगर सिद्ध होगी, ऐसी आशा और विश्वास है।
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खाने में देगी अधिक पोषण
जनेकृविवि के धान वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार सिंह के मुताबिक प्रदेश में अभी 60 से 80 दिनों में पकने वाली धान की फसल उगाई जा रही है। हम ऐसी धान पर काम कर रहे हैं जिसे पकने में तो कम पोषण लगेगा, लेकिन खाने वालों को यह अधिक पोषण देगी। इस धान की बायो फोर्टिफाइड किस्में हाइब्रिड होंगी। इससे किस्म का लाभ प्रदेश के दमोह, हरदा, बैतूल, रीवा, छतरपुर के किसानों को होगा।
नहीं भरना होगा खेतों में पानी
सबसे बड़ी बात कि इसे रोपना नहीं पड़ेगा और न खेतों में रोपाई के लिए पानी ही भरना होगा। इसकी बुआई डीप ड्रिल मशीन से गेहूं और चने की तरह की जाएगी। अभी प्रदेश में 92 फीसद क्षेत्रों में धान की खेती पौधरोपण विधि से होती है। बुआई की तकनीक से पानी कम लगेगा, वहीं बारिश का पानी खेतों में पौधों के जरिए जमीन के भीतर पहुंचेगा। जिससे ग्राउंड वाटर भी रिचार्ज होगा।
इन किस्मों में किया जा रहा सुधार
वैज्ञानिकों के मुताबिक धान की दुबराज, कालीमूंछ, क्षत्रिय और जीरा संकर जैसी किस्मों में जिंक प्रोटीन अधिक होता है। यह पकने में भी अधिक समय लेती है। इसलिए इनमें किसानों की रूचि नहीं है। इन किस्मों में भी सुधार किया जाएगा। इससे इनमें 3 से 4 फीसद प्रोटीन और 8 से 10 फीसद जिंक बढ़ जाएगा।
किसानों के खर्च में होगी बचत
वर्तमान में धान की रोपाई के पहले कल्टीवेटर चलाकर खेत को समतल करना होता है। इसके बाद पानी भरा जाता है। इन सब में एक हेक्टेयर में लगभग 9 हजार का खर्च आता है। सीधी बुआई करने से यह खर्च मात्र 1 हजार रुपये रह जाएगा। बीज भी सरकार से मिलेंगे और प्राइवेट कंपनियों पर किसान निर्भर नहीं रहेंगे।