IAS Success Story : अनाथालय में रहे, पेपर बेचे-क्लीनर का काम किया, फिर भी बुलंद हौसलों से बने आईएएस

IAS Success Story : अगर देखना है मेरी उड़ान, तो आसमां को और ऊंचा कर दो... यह शेर अधिकांश लोगों ने सुना ही होगा। इसे सोचते-लिखते समय शायर ने किसी पक्षी से भले ही बात नहीं की होगी, लेकिन उन विरले लोगों का संघर्ष जरुर देखा होगा जो जीवन में तमाम संघर्षों और अभावों से जूझने के बावजूद सफलता के शीर्ष पर पहुंचते हैं।

IAS Success Story : अनाथालय में रहे, पेपर बेचे-क्लीनर का काम किया, फिर भी बुलंद हौसलों से बने आईएएस
Image Source : Zee News

IAS Success Story : अगर देखना है मेरी उड़ान, तो आसमां को और ऊंचा कर दो… यह शेर अधिकांश लोगों ने सुना ही होगा। इसे सोचते-लिखते समय शायर ने किसी पक्षी से भले ही बात नहीं की होगी, लेकिन उन विरले लोगों का संघर्ष जरुर देखा होगा जो जीवन में तमाम संघर्षों और अभावों से जूझने के बावजूद सफलता के शीर्ष पर पहुंचते हैं।

आज हम ऐसी ही शख्सियस की चर्चा करेंगे। लेकिन, इससे पहले आपसे एक सवाल… क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जिस शख्स के सिर से पिता का साया बचपन में छिन जाए, जिसका जीवन अनाथालय में बीता हो, जिसने पेट भरने पेपर बेचे, क्लीनर का काम किया, वह शख्स कभी आईएएस के पद तक पहुंच सकता है…?

अथक परिश्रम ने दिलाई अकल्पनीय सफलताएं

आपस दो टूक कहेंगे- यह असंभव है…! अधिकांश लोग इसी तरह की राय रखते होंगे, लेकिन दुनिया में कुछ ऐसे दुर्लभ जीजीविषा वाले लोग भी हैं जो इस दुनिया में आए ही असंभव को संभव कर दिखाने के लिए। केरल के बी. अब्दुल नासर भी इन्हीं विरले लोगों में से एक हैं। वे डायरेक्ट आईएएस भले ही न बने हो, लेकिन अपने कॅरियर में उन्होंने इस कदर का परिश्रम किया वे आज आईएएस हैं। चलिएं, जानते हैं इनकी संघर्ष गाथा।

परिवार ने अनाथालय में बिताए 13 साल

बी. अब्दुल नासर का जन्म केरल के कन्नूर जिले के थलास्सेरी में हुआ था। वे जब मात्र 5 साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया। मजबूरी में उनके परिवार को एक अनाथालय में शरण लेना पड़ा। उनकी मां घरों में काम करके जैसे-तैसे परिवार का पेट पालने का जतन करती थी। ऐसे अभावों की जिंदगी के 13 साल नासर और उनके परिवार ने अनाथालय में बिताए।

छोटे-छोटे काम के साथ जारी रखी पढ़ाई

यह देख नासर ने अपने परिवार की मदद के लिए आगे आना जरुरी समझा। उन्होंने इसी के साथ अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। दस बरस की उम्र में ही उन्होंने क्लीनर और होटल सप्लायर के रूप में काम करना शुरू किया। इसके साथ ही उन्होंने परिवार को मदद करने पेपर बेचने, ट्यूशन पढ़ाने और टेलीफोन ऑपरेटर जैसे काम भी किए। इसके साथ ही वे पढ़ाई में भी जुटे रहे।

कर्मचारी के रूप में की कॅरियर की शुरुआत

उन्होंने थालास्सेरी के सरकारी कॉलेज से स्नातक और वर्ष 1994 में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। इसके बाद केरल के स्वास्थ्य विभाग में बतौर कर्मचारी अपना कॅरियर शुरू किया। मेहनती तो वे थे ही, इसी मेहनत, परिश्रम और लगन के साथ वे अपनी ड्यूटी भी करते रहे। नतीजतन, उन्हें लगातार प्रमोशन मिलते रहे। वर्ष 2006 में वे डिप्टी कलेक्टर पद तक पहुंच गए।

वर्ष 2017 में हुआ आईएएस अवार्ड

वर्ष 2015 में नासर केरल के टॉप डिप्टी कलेक्टर के रूप में मान्यता हासिल हुई। इसके बाद आया उनके जीवन का अहम क्षण जब वर्ष 2017 में उन्हें आईएएस अवार्ड हो गया। वर्ष 2019 में वे कोल्लम जिला के कलेक्टर बने। इससे पूर्व उन्होंने केरल सरकार के आवास आयुक्त के रूप में सेवाएं दी।

आईएएस नासर की कहानी देती है यह सीख

बी. अब्दुल नासर की यह प्रेरणादायक कहानी हमें सीख देती है कि हर कोई संपन्न व्यक्ति के रूप में ही जीवन नहीं लेता। अभाव और बाधाएं तो हर किसी के जीवन में आती रहती है। अब जो इन्हें ही अपनी किस्मत मान कर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं, उन्हें कभी सफलता नहीं मिल सकती। इसके विपरीत जो इन बाधाओं का बहादुरी से मुकाबला करते हुए आगे बढ़ने की ठान लेता है, सफलता भी उन्हीं का इस्तकबाल करती हैं।

Uttam Malviya

उत्तम मालवीय : मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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