Natural Farming : प्राकृतिक खेती अपनाकर आत्मनिर्भर और रसायन मुक्त हुए एमपी के यह गांव
Natural Farming : सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। बड़ी संख्या में किसान अब प्राकृतिक खेती को अपना भी रहे हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि मध्यप्रदेश में कई गांव ऐसे भी हैं जो पूरी तरह से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। वहां कोई भी किसान रासायनिक खेती नहीं करता है। यही कारण है कि यह गांव पूरी तरह से रसायन मुक्त हो चुके हैं।
Natural Farming : सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। बड़ी संख्या में किसान अब प्राकृतिक खेती को अपना भी रहे हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि मध्यप्रदेश में कई गांव ऐसे भी हैं जो पूरी तरह से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। वहां कोई भी किसान रासायनिक खेती नहीं करता है। यही कारण है कि यह गांव पूरी तरह से रसायन मुक्त हो चुके हैं।
यह गांव मंडला और सागर जिले में स्थित हैं। हाल ही में आत्मनिर्भर पंचायत-समृद्ध मध्यप्रदेश पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें इस बात का खुलासा हुआ। कार्यशाला में जनजातीय जिलों की पंचायतों से आई कृषक महिलाओं ने अपनी उपलब्धियां बताई। इसका आयोजन पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग और जर्मन संस्था जीआईजेड द्वारा किया गया।
इतनी जमीन पर होती खेती
कार्यशाला में मंडला के निवास विकासखंड में सिंहपुर गांव की रहने वाली लक्ष्मी बैरागी ने बताया कि कैसे सिंहपुर गांव रासायनिक खेती से मुक्त गांव बन गया है। यहां पूरी तरह से प्राकृतिक खेती हो रही है। उन्होंने बताया कि यहां 450 एकड़ जमीन है जो 120 किसानो की है और 80 एकड़ आवासीय भूमि है। यहां 12 एकड़ में प्लांटेशन लगा है और 45 एकड़ में चारा उगाया जा रहा है।
ऐसे करते खाद की व्यवस्था
अपना अनुभव साझा करते हुए वे कहती है कि जल, जंगल जमीन, पशु और चारागाह के बिना प्राकृतिक खेती नहीं की जा सकती। वे बताती है कि प्राकृतिक खेती करने से गोमूत्र आधारित कीटनाशक और अन्य खाद की कमी पड़ जाती है। इसलिए गोमूत्र से जैविक खाद और कीटनाशक बनाने का काम पशु शेड से जुड़कर किया जा रहा है। यही नहीं, अन्य गांव भी इस ओर तेजी से बढ़ रहे हैं।
यहां बनाई जा रही जैविक खाद
मंडला जिले की ही बिछिया विकासखंड के कन्हरी बजन ग्राम पंचायत के भुलूज गाँव की रहने वाली किसान दीदी ने बताया कि तालाबों में मछली पालन किया जा रहा है और मुर्गी पालन और पशु शेड का उपयोग जैविक खाद बनाने में हो रहा है।
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किचन गार्डन से मिल रही सब्जियां
इस गांव में 65 किसान दीदियों ने अपने घरों में किचन गार्डन विकसित किया है और सब्जियां उगा रही हैं। आंगनबाड़ियों को भी सब्जियां दे रही हैं। पूरा गांव प्राकृतिक खेती कर रहा है। यहाँ के किसान खेती में लगने वाले महंगे रसायनों से मुक्त होकर अब खेती में आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
अब बाजार पर नहीं रही निर्भरता
मोहगांव विकासखंड की ग्राम पंचायत कावरडोंगरी की किसान दीदी बताती हैं कि पोषण वाटिका के पहले सब्जियों के लिए बाजार जाते थे और रसायन वाली सब्जियां खाते थे। अब शुद्ध सब्जियां मिल रही हैं।
यहां तैयार हो रहा जैविक खाद
स्वचालित जीवामृत उत्पादन संयंत्र, प्लांट क्लीनिक और सामुदायिक जैव संसाधन केंद्र के मॉडल की भी जानकारी दी गई। प्लांट क्लीनिक सागर के बंडा में चल रहा है। किसानों को पौधों में लगने वाले रोगों और रोकथाम के बारे में जानकारी दी जाती है। मंडला के गांव चंदाटोला में जीवामृत जैविक खाद और गोमूत्र से तैयार किए जा रहे हैं कीटनाशक बन रहे हैं।
एक बार में दो हजार लीटर जीवामृत
यहां की चंपा दीदी कहती हैं कि एक बार में 2000 लीटर जीवामृत बन जाता है। कोई मेहनत भी नहीं लगती। प्रेमवती बाई बताती हैं कि 10 किलो बेसन, 10 किलो गुड़, 50 लीटर गोमूत्र और 50 किलो गोबर के मिश्रण से कीटनाशक तैयार होता है। आसपास के चार-पांच गांवों में किसानों को बेच देते हैं।
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अब तक 45 हजार का शुद्ध लाभ
अब तक 7200 लीटर बेचने से 45 हजार का शुद्ध मुनाफा हुआ। सागर जिले के शासन गांव की मनीषा दीदी बताती है कि वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम शुरू किया है। चार टैंक तैयार किए गए हैं और 10 गांव में सप्लाई कर 20 हजार रूपये का फायदा हो चुका है।
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मध्यप्रदेश में 16 परियोजनाएं
उल्लेखनीय है कि जर्मनी सरकार और भारत सरकार के बीच 2022 में हुए एग्रीमेंट के मुताबिक हरित सतत विकास साझेदारी कार्यक्रम में मध्यप्रदेश में 16 परियोजनाएं चल रही है। पूरे देश में 50 परियोजना चल रही है। यह समझौता 2030 तक चलेगा। दोनों देशों की कैबिनेट स्तरीय बैठक इसी साल अक्टूबर माह में होने वाली है।
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जर्मनी से मिल रही इतनी मदद
जर्मनी की सरकार भारत को 90 हजार करोड़ रुपए देने के लिए वचनबद्ध है, जिसमें हर साल भारत को दस हजार करोड़ रुपए मिल रहे हैं। इन परियोजनाओं का संचालन जीआईजेड और बैंकिंग संस्था केएफडब्ल्यू द्वारा हो रहा है।