Sabse Sasta Scooter : पेट्रोल-डीजल लगता है न बिजली, फिर भी फर्राटे भरता है यह स्कूटर

Sabse Sasta Scooter : एक ओर वाहनों की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है। वहीं दूसरी ओर इन वाहनों को चलाने के लिए पेट्रोल-डीजल का खर्च भी लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में आम लोगों को यही तलाश रहती है कि वाहन भले ही थोड़ा महंगा आए, लेकिन उसे चलाने का खर्च कम से कम हो।

Sabse Sasta Scooter : पेट्रोल-डीजल लगता है न बिजली, फिर भी फर्राटे भरता है यह स्कूटरSabse Sasta Scooter : एक ओर वाहनों की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है। वहीं दूसरी ओर इन वाहनों को चलाने के लिए पेट्रोल-डीजल का खर्च भी लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में आम लोगों को यही तलाश रहती है कि वाहन भले ही थोड़ा महंगा आए, लेकिन उसे चलाने का खर्च कम से कम हो।

यह बात अलग है कि लोगों की यह तलाश कम ही पूरी हो पाती है। यह बात अलग है कि मजबूरी में ही सही लोग महंगे वाहन भी ले रहे और पेट्रोल-डीजल पर भी भारी-भरकम राशि खर्च कर रहे हैं। इन सबके विपरीत यदि आपसे कहा जाए कि एक स्कूटर ऐसा भी है, जिसे बिना खर्च के चला सकते हैं तो शायद ही आप यकीन करें।

आप भले ही इसे सच न माने, लेकिन यह सच है। एक स्कूटर ऐसा भी होता है जिसे चलाने के लिए न पेट्रोल लगता है और न डीजल और न ही बिजली पर कुछ खर्च करना पड़ता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी कीमत भी इतनी कम है कि आप शायद ही विश्वास करें।

इस देश में होता है इस्तेमाल

हम बात कर रहे हैं रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो नामक देश में प्रचुरता से चलने वाले स्कूटर चुकुडू (Wooden Scooter Chukudu) की। ट्विटर अकाउंट @AficanHub पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में इस स्कूटर के बारे में बताया गया है। डीवी न्यूज के अनुसार इस स्कूटर को स्थानीय लोग बनाते हैं और बेचते हैं। इसे वहां इतना अधिक इस्तेमाल किया जाता है कि हर कोई यह स्कूटर चलाते हुए नजर आ जाएगा।

यहाँ देखें वीडियो…⇓

मात्र 8 हजार रुपये कीमत (Sabse Sasta Scooter)

बताया जाता है कि इसकी कीमत मात्र 100 डॉलर यानी लगभग 8000 रुपये हैं। इसके चलते इसे खरीदना अधिकांश लोगों के बस में होता है। इसे धक्का देकर चलाया जाता है। लोग इसका उपयोग कहीं भी आने-जाने या फिर सामान ढोने में करते हैं। यह काफी मजबूत भी होता है।

आसान नहीं इसे बनाना (Sabse Sasta Scooter)

यह स्कूटर लकड़ी से जरुर बनता है, लेकिन हर कोई इसे नहीं बना सकता। इसे बनाने के लिए कुशलता की जरुरत होती है। पहले लकड़ी से अलग-अलग हिस्सों को बनाया जाता है और फिर इन हिस्सों को फिट कर दिया जाता है। लकड़ी का ही गोल टायर भी होता है। बाद में चमड़े से बाहरी हिस्सा कर कील से लकड़ी के टायर पर जड़ दिया जाता है।

Uttam Malviya

उत्तम मालवीय : मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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