Sulgate Sawal : हे मोहन जी, हादसों के बाद ही क्यों आ रही जिम्मेदारों की याद, किसने बनने दिए बेसमेंट, क्यों नहीं ढहाए कंडम भवन..?

Sulgate Sawal : सागर जिले के शाहपुर में दीवार गिरने से 9 घरों के चिराग बुझ गए। इससे एक दिन पहले रीवा में 4 बच्चों की मौत हो गई थी। शुरुआती औपचारिकता पूरी करते हुए कलेक्टर, एसपी, एसडीएम को हटा दिया है। वहीं डॉक्टर, सीएमओ और उपयंत्री को निलंबित कर दिया गया है। अब प्रदेश भर में जर्जर भवनों को चिन्हित करने की जांच का आडंबर चलेगा।

Sulgate Sawal : हे मोहन जी, हादसों के बाद ही क्यों आ रही जिम्मेदारों की याद, किसने बनने दिए बेसमेंट, क्यों नहीं ढहाए कंडम भवन..?

⇓ उत्तम मालवीय, बैतूल⇓

Sulgate Sawal : सागर जिले के शाहपुर में दीवार गिरने से 9 घरों के चिराग बुझ गए। इससे एक दिन पहले रीवा में 4 बच्चों की मौत हो गई थी। शुरुआती औपचारिकता पूरी करते हुए कलेक्टर, एसपी, एसडीएम को हटा दिया है। वहीं डॉक्टर, सीएमओ और उपयंत्री को निलंबित कर दिया गया है। अब प्रदेश भर में जर्जर भवनों को चिन्हित करने की जांच का आडंबर चलेगा।

प्रदेश शासन ने इसके आदेश-निर्देश जारी कर दिए हैं। लिहाजा प्रशासन और नगरीय निकाय भी कुछ दिनों तक अभियान चलाएंगे। अपनी कर्मठ कार्यशैली दिखाने शासन स्तर तक रिपोर्ट भी भिजवाएंगे। कुछ प्रचार प्रेमी अफसर मीडिया तक प्रेस नोट भिजवाकर अपनी वाहवाही भी करवाएंगे। लेकिन, असल में और जमीन पर कुछ खास बदलने वाला नहीं है।

सागर का मामला जब तक सुर्खियों में रहेगा, तब तक सब तरफ सक्रियता दिखाई जाती रहेगी। वह मामला ठंडा पड़ा कि बाकी सब भी सब भूल जाएंगे। किसी को ना यह याद रहेगा कि जर्जर भवन चिन्हित करना है और ना ही यह याद रहेगा कि चिन्हित जर्जर भवनों को जमींदोज भी करना है। ऐसा लगता है कि इतना भारी भरकम सरकारी अमला अपने कर्तव्यों के निर्वहन को नहीं, बल्कि केवल रस्म अदायगी करने को बैठा है और इसी के लिए मोटा वेतन और तमाम सुविधाएं ले रहा है।

आज से नहीं बल्कि बीते कई सालों से रस्म अदायगी का यह दस्तूर देखने को मिल रहा है। कहीं खुले बोरवेल में हादसा हो जाए तो वे याद आ जाते हैं, बस हादसा हो जाए तो बसों की याद आ जाती है। कोचिंग में हादसा हो जाए तो बेसमेंट की याद आ जाती है। आग लगने की घटना हो जाए तो फिर फायर NOC की याद आ जाती है। इसके बाद कुछ दिनों तक खूब मुहिम चलने का दिखावा होता है, लेकिन वास्तव में होता जाता कुछ नहीं है।

खुले बोरवेल में हादसों के बाद इन्हें लेकर कई बार अभियान चलाए जा चुके हैं। इसके बावजूद अभी भी इनमें हादसे होते ही रहते हैं। कोई अफसर यह दावा नहीं कर सकता कि उसके इलाके के शत प्रतिशत खुले बोरवेल बंद कराए जा चुके हैं। इसी तरह की स्थिति अन्य मामलों में भी होती है। हादसे होते हैं, फिर अभियान चलते हैं, कुछ दिन बाद पब्लिक भी भूल जाती हैं और जिम्मेदार भी और व्यवस्था की गाड़ी फिर भगवान भरोसे चलने लगती है।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसे हादसों की वजह क्या है? आखिर क्यों होते हैं ऐसे हादसे जो एक या कई परिवारों को जिंदगी भर का कभी न भूलने वाला दर्द दे जाते हैं। मेरा मानना है कि इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ वह सरकारी अमला है जो अपने कर्तव्यों और उनके ईमानदारी से निर्वहन की ओर से आंख मूंदे बैठा है। यदि हर विभाग के अफसर और कर्मचारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी और निष्ठा से करें तो ऐसे हादसे हो ही नहीं और न फिर बाद में जागकर ऐसे अभियान चलाने की जरूरत ही पड़ेगी।

देखा जाए तो हर तरह की व्यवस्था देखने के लिए अलग-अलग विभाग बने हैं। हर विभाग में अधिकारी-कर्मचारी इसलिए तैनात कर रखे हैं कि वे यह तमाम व्यवस्थाएं देखें, जो नियम विरुद्ध है उस पर कार्यवाही करें और नियम सम्मत बनाएं ना कि हादसे होने पर दिखावे के लिए अभियान चलाए। लेकिन लगता नहीं कि कोई भी विभाग अपने दायित्वों का निर्वहन ईमानदारी से कर रहा है।

आलम यह है कि खटारा वाहनों को सड़कों पर दौड़ने का परमिट विभाग दे देता और वे दौड़ते रहते हैं। विभाग को उसके खटारा होने का पता तब चलता है जब कोई हादसा हो जाए या मीडिया उसकी बदहाली दिखा दें। हर शहर में बेसमेंट का कमर्शियल उपयोग होता है, बड़े-बड़े भवनों में फायर सेफ्टी के नाम पर कुछ नहीं होता, तमाम जर्जर भवन मौत को दावत देते खड़े रहते हैं पर किसी को इन्हें देखने की  फुरसत नहीं होती।

हादसा होने के बाद चलने वाले अभियानों में कुछ जहां कागजों पर सब कुछ ठीक कर देने की रिपोर्ट भिजवा देते हैं तो कुछ इसमें भी अपनी जेब गरम कर लेते हैं। कुछ महीने या कुछ साल बाद फिर उसी तरह के हादसे होते हैं और शासन प्रशासन भी “बड़ी कार्रवाई” बताते हुए कुछ का तबादला कर देता है तो कुछ को निलंबन के नाम पर आराम दे देता है। स्थिति सामान्य होते ही उन्हें फिर पहले की तरह अनदेखी करने के लिए बहाल कर दिया जाता है।

इससे स्पष्ट है कि सरकार भी सरकारी अमले को कर्तव्यों के निर्वहन के नाम पर मोटा वेतन और तमाम सुविधाएं तो देती है, लेकिन कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही पर वाजिब सजा नहीं देती। होना तो यह चाहिए कि इस तरह के गंभीर लापरवाही के मामले सामने आते ही संबंधित को सीधे बर्खास्त करके उसके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवानी चाहिए। जब ड्यूटी के लिए वेतन और सुविधाएं लेना सरकारी अमले का अधिकार है तो कर्तव्यों के निर्वहन की सजा भी तो उसे मिलनी चाहिए।

लेकिन, हकीकत यह भी है कि खुद सरकार ने ही सरकारी अमले को नियम कानूनों का इतना संरक्षण दे रखा है कि बड़े से बड़े कांड और हादसे होने पर भी जिम्मेदारों का भी कुछ नहीं बिगड़ता। इससे साफ है कि सरकारें खुद ही नहीं चाहती कि सब कुछ व्यवस्थित हो। इसलिए आम जनता को भी यह उम्मीद नहीं पालना चाहिए कि एक हादसे के बाद सब ठीक हो ही जाएगा। हादसे होते रहेंगे, फिर अभियान की रस्म अदायगी भी चलती रहेगी, लेकिन व्यवस्था बिल्कुल नहीं सुधरेगी। इसलिए बेहतर है कि आम लोग अपना और अपने परिवार का ध्यान खुद रखें, उनकी चिंता खुद करें।

Uttam Malviya

उत्तम मालवीय : मैं इस न्यूज वेबसाइट का ऑनर और एडिटर हूं। वर्ष 2001 से पत्रकारिता में सक्रिय हूं। सागर यूनिवर्सिटी से एमजेसी (मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन) की डिग्री प्राप्त की है। नवभारत भोपाल से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद दैनिक जागरण भोपाल, राज एक्सप्रेस भोपाल, नईदुनिया और जागरण समूह के समाचार पत्र 'नवदुनिया' भोपाल में वर्षों तक सेवाएं दी। अब इस न्यूज वेबसाइट का संचालन कर रहा हूं। मुझे उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित सरोजिनी नायडू पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य भी नवदुनिया समाचार पत्र में कार्यरत रहते हुए प्राप्त हो चुका है।

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